Am a villager
आजादी को प्यारे पंछी ,सोने के पिंजरों से अनीति रखते हैं,
देर तक रहने वाले खामोश,बाहर आते ही शोर करते हैं, समझाइश या तो ज्यादा है उन्हें या हैं ही नही,
तभी वो विचार नही कर पाते उड़ना जरूरी हैं,
या समय की ख़बर रखना,की आना है वापस सांझ को घर,
यह डर उन्हें बाहर निकलने देता ही नही,
की हुनर रखते हैं जो उड़ने का भी ओर ठहरने का भी,
वो थोड़े हंस जाते हैं उन पर, गर हंसने से सूंकूँ मिले उनको तो उनके साथ मुस्करा देने में कोई गम नही,मगर वो आते हैं पँखो को काटने तो सामना करने से कतराते नही,
की मिले इतनी हिम्मत की कटरता से जवाब दे सके,
पर यहां भी कुछ हालातो से समझौता कर जाते हैं,
हम अनु बो हैं जो मिले या ना मिले पर
रब की मर्जी मानकर खुश रहना सिख जाते हैं,
तोह आती हैं देर से ही सही एक बात जहन में
जब कोई मसला ही नही फिर मलाल कैसा डर का,
फिर अनीति को नीति बनाने की जिद क्यों कर जाते हैं ,
खुद से...।।
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।। आभार ।। |
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बहुत ही शानदार
जवाब देंहटाएंशुक्रिया 🙏
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